Tuesday, December 31, 2013


रूपान्तरण   


 दोपहर से ही उन दोनों का मूड खराब था। एक-दूसरे के व्यवहार को गलत मानते हुए, बिना करवट बदले एक-दूसरे की ओर पीठ किए लेटे थे। सोचते-सोचते समय के एक क्षण पर आकर निशा के अहं के कदम ठहर से गए। अन्तर्मन में चल रही पिक्चर को उसने बार-बार आगे-पीछे मूव करके देखा।
     क्या विद्यु सचमुच गलत था और वह सही?....उत्तर में सकारात्मक ध्वनि नहीं निकल पा रही थी। बात छोटी सी ही सही, पर विधु की बात में गलत क्या था। उसने आखिर इतना ही तो कहा था- परफारमेंस, परफारमेंस होती है। वह टी.वी. कार्यक्रम में नियोजित आर्टिस्टों द्वारा दी गई हो या गली-मोहल्ले की सड़कों पर घुमक्कड़ों के द्वारा। बल्कि घुमक्कड़ों द्वारा दी गई परफारमेंन्स कहीं स्वाभाविक होती है। इसलिए इन घुमक्कड़ों को भी जनता से उतना ही प्रोत्साहन पाने का हक है, जितना नियोजित टी.वी. आर्टिस्टों को। उसके द्वारा घुमक्कड़ों की तुलना भिखारियों से करने का विधु ने विरोध किया था।
     ‘‘तुम इन घुमक्कड़ बच्चों के गाने की परफारमेन्स पर इनका उत्साहबर्द्धन नहीं करना चाहती हो तो मत करो, पर इन्हें भिखारी मत कहो। मैंने इन्हें पांच रुपये देकर न तो घर लुटा दिया है और न इनको महिमा मण्डित कर दिया है। मुझे उनका गाना अच्छा लगा, सो प्रोत्साहन के तौर पर कुछ दे दिया। कभी सोचकर देखो, कितना प्यारा गाते हैं दोनों! घंटे-दो घंटे अपनी कला का प्रदर्शन करके ये कुछ कमा लेते हैं तो क्या गलत करते हैं? इनका बाप नहीं है, मां घरों में चौका-बर्तन करती है। इतना नहीं कमा पाती कि दो वक्त की दाल-रोटी के बाद इन्हें पढ़ा-लिखा सके। अपनी पढ़ाई का खर्चा ये अपनी कला की परफारमेन्स देकर निकालते हैं। 
     हो सकता है वे टी.वी. आर्टिस्ट कला को समृद्ध कर रहे हों, पर इन्हें कुछ देना भीख है तो उनकी परफारमेन्सेज को एप्रीसिएट करने के लिए तुम रोज मेसेजों पर बीस-तीस रुपये खर्च देती हो, वह क्या? उनको वोट/सपोर्ट करना कोई निशुल्क तो नहीं है। मैंने तो तुम्हें कभी नहीं टोका। परफारमेंस के बाद ये कुछ मांगते हैं तो वे भी कुछ मांगते हैं।
    विधु के द्वारा मेसेजों पर बीस-तीस रुपये खर्च कर देने की बात उसे चुभ गई थी। उसे लगा था जैसे विधु ने उसके एन्ज्वायमेंट पर फिजूलखर्ची का कमेन्ट कर दिया हो। पर शायद उसकी बात समझने का मेरा एंगिल गलत था। उसने तो अपनी बात समझाने के लिए दोनों स्थितियों में तुलना भर की थी। पर उसके कहने के ढंग में तीखापन भी तो बहुत था। वह प्यार से भी अपनी बात कह सकता था। पर तीखापन तो मेरी बात में भी कम नहीं था। फिर मैं इस बात पर उससे कई बार पहले भी उलझ चुकी हूँ। शायद उसका तीखापन इसी की प्रतिक्रिया रहा हो। जो भी हो...मुझे विद्यु को सॉरी....।
    और निशा ने करवट बदला। अपना एक हाथ विधु के शरीर पर रखा और धीरे से बोली, ‘‘सॉरी यार! अब माफ भी कर दो.... गलती हो गई...।

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