Tuesday, March 31, 2020

उमेश महादोषी

फेस बुक की सड़क पर

      ‘‘आज पहली अप्रैल है!’’
      ‘‘तो...?’’
      ‘‘तो क्या... कुछ नहीं!’’
      ‘‘मतलब...?’’
      ‘‘मतलब क्या... आज पहली अप्रैल है!’’
      ‘‘बिना बात बोलते हो... बेवकूफ... चुप रहा करो!’’
      ‘‘....!’’
      ‘‘तभी कहीं से आवाज आती है... कोरोना पूरे देश में तेजी से फैल रहा है... लगभग चौदह सौ कन्फर्म हो चुके हैं... पेंतीस डैथ हो चुकी हैं...’’
      ‘‘हा..हा...हा....हा...’’
      ‘‘चुप रहो! ....कोरोना सचमुच फैल रहा है...’’
      ‘‘इसीलिए तो मैं घर में बन्द हूँ...’’
      ‘‘नहीं, तुम घर में बन्द नहीं हो... मैं देख रहा हूँ... तुम और तुम्हारे दोस्त सरेआम बेतरतीब सड़क पर दौड़ रहे हो... खुद भी मरोगे, दूसरों को भी मारोगे..’’
      ‘‘सड़क पर...? ...मरूँगा ...मारूँगा... क्या कह...??’’
      ‘‘हाँ... फेसबुक की सड़क पर...’’
      ‘‘पर.. आज तो पहली अप्रैल है...’’
      ‘‘.... ...!!!’’ उसने माथा पीट लिया।

Monday, March 30, 2020

उमेश महादोषी
प्रश्न तैयारी का
      दोनों समय की मिलन बेला में वे पति-पत्नी एक दूसरे से बातें करते उस जंगल भरे रास्ते से साइकिल पर चले जा रहे थे। अचानक उनके सामने एक शेर आ गया। शेर की दहाड़ सुनते ही उनके होश उड़ गये। देखते ही भयाक्रान्त पत्नी पति का इशारा पाकर पीछे की ओर दौड़ पड़ी। पति शेर के सामने हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाने लगा, ‘‘शेर भैया आज मुझे छोड़ दो, कल मैं अपने पड़ौसी को लेकर आऊँगा! मैं और मेरी पत्नी, दोनों ही दुबले-पतले हैं, आपकी भूख नहीं मिटेगी। मेरा पड़ौसी बहुत मोटा है। वह अकेला ही आपके लिए काफी होगा।’’
      पर शेर ठहरा शेर! एक तो बड़ी मुश्किल से कई दिनों के बाद शिकार हाथ आया था, ऊपर से यह पत्नी को भगाकर चालाकी दिखा चुका था। दोहरी बौखलाहट में गुर्राते शेर ने पहले ही झपट्टे में कर दिया काम तमाम! इत्मीनान से खींचकर झाड़ियों की ओट में ले जाकर अपनी भड़कती छुधा को शान्त करने लगा।
      उधर दौड़ती हुई पत्नी मुश्किल से एक फर्लांग की दूरी ही तय कर पाई होगी कि उसे तीन नरपिशाचों ने घेर लिया। उनके इरादे भाँपकर वह गिड़गिड़ाई, ‘‘मैं पहले से ही मुसीबत की मारी हूँ। मेरा पति शेर से जूझ रहा है। हो सके तो आप उसकी मदद करो। वैसे भी मेरे शरीर से तुम्हें क्या हासिल हो सकेगा! मैं तन-मन, दोनों से टूटी और घबराई हुई...!’’
      लेकिन नरपिशाचों में कहाँ होती है दया-ममता! और कहाँ होता है सबर! वे उसे खींचते हुए ले गये...। इतना अवश्य हुआ कि सीता की तरह चीखती उस अबला की चीखें वहाँ से गुजरते जटायु के एक वंशज ने सुन लीं। पर वह जटायु का वंशज था, जटायु नहीं! सो वह उस सीता मैया की मदद तो नहीं कर सका, हाँ पड़ौस के कस्बे में जाकर हल्ला जरूर मचा दिया। छुटभैये नेताओं और पत्रकारों को हरकत में आते देर नहीं लगी। रात होते-होते मीडिया के सारे अवतार खड़क चुके थे। निशाने पर थी सरकार और उसका ऊर्जावान मुख्यमंत्री। निष्कर्ष बड़ा सुन्दर था, सरकार और मुख्यमंत्री क्या करते-रहते हैं दिन भर पड़े-पड़े! ऐसी आपात स्थितियों के लिए तो हर समय तैयारी होनी चाहिए, सरकार को अलर्ट पर रहना चाहिए! सरकार भी स्थिति भाँपकर तुरन्त हरकत में आई। अगले दिन का सूरज आँखें मिचमिचाता हुआ बिस्तर छोड़ता, इससे पूर्व ही तीनों बलात्कारी मय स्वरकारोक्ति और सबूतों के पुलिस के हत्थे चढ़ चुके थे। लेकिन राजनीति तो इससे आगे की चीज होती है।
      दोपहर होते-होते पूरा प्रदेश धूँ-धूँकर जलने लगा। मुख्यमंत्री ने हाथे जोड़े, ‘‘भाइयो और बहनो, हमें दो दिन का समय दो। हम सख्त कार्यवाही करेंगे, बलात्कारियों पर भी और वन विभाग पर भी। हम सुनिश्चित करेंगे कि भविष्य में कोई शेर और बलात्कारी सड़क पर दिखाई न दे।’’
      पर तैयारी का समय कौन किसे देता है! शेर ने उस पति को नहीं दिया, बलात्कारियों ने उस पत्नी को नहीं दिया तो राजनीति व्यवस्था को कैसे दे दे! दे देंगे तो कैसे शेर का पेट भरेगा, कैसे नरपिशाचों की वासना शान्त होगी और कैसे शहर और गाँव जलेंगे!
      सरकार की फेल होती अपील का परिणाम यह हुआ कि पुनः शाम होते-होते तीनों बलात्कारी पुलिसिया मुठभेड़ के रास्ते चलकर अपनी वासना की स्थाई शान्ति को प्राप्त कर गये। और जब जनता पुलिस और शासन के गीत गाने को इकट्ठी हुई तो सरकार को एक मौका मिल गया। उसने भी अचानक राजनीति के गले में पट्टा डालकर खींच दिया। राजनीति चीखती रही, हमें स्थिति को समझने और अपने समर्थकों को समझाने का समय नहीं दिया जा रहा।
      तीसरे दिन की सुबह नए अध्यादेश का चमत्कार था या सरकार की आपातस्थिति से निपटने की आपात तैयारी, पूरा प्रान्त एकदम शान्त था। राजनीति पूरी तरह उकड़ू बैठी दिखाई दी। भड़काने वाले कहाँ थे, किसी को पता नहीं था। जनता के मध्य कुछ शेष था तो बस मुख्यमंत्री की जय-जयकार! न्यायालय में भी सरकार का दो टूक जवाब था, पाँच सौ भड़काऊ भैये कहाँ गये, उसे नहीं मालूम! प्रदेश में कोई भी कहीं भी जाने-रहने को आजाद है। हाँ, उनके परिजन और न्यायालय चाहेंगे तो उनकी खोजबीन को सरकार पूरी तरह तैयार है! 
      न्यायालय भी क्या करे, सरकार ने उसे तैयारी का अवसर ही कब दिया!
      मैंने कुछ गलत कहा, पाठक भैया?