Friday, September 9, 2011

चौकीदार

   किचन से बर्तनों के खड़कने की आवाज सुनकर मेरी नींद खुल गयी। घड़ी पर नजर डाली तो साढ़े पांच बजे थे।......गार्गी जल्दी उठ गयी?.....पर किचन में इतनी जल्दी जाने की क्या जरूरत.....! मैं उठा और सीधा किचन में..... ‘क्या हुआ? करीब पौना घंटा पहले ही उठ गईं और चाय भी अभी से......?’
   ‘हाँ, करीब तीन बजे बाथरूम जाने को उठी थी, बस उसके बाद नींद आई ही नहीं। सिर कुछ भारी सा लगने लगा, तो सोचा चाय पीकर शायद कुछ आराम हो जाये..... बस!’
   ‘लगता है आज फिर कोई टेंशन पाल लिया।.... तुम क्यों इतना अधिक सेन्सेटिव होती जा रही हो? कैसे चलेगा इस उम्र में? भई अब निश्चिन्त होकर आराम से गुजारने के दिन आये तो तुम अनावश्यक चिन्ताओं में खोने लगी हो?’ खैर आज हम जल्दी उठ ही गये हैं, तो चाय पीकर आज जल्दी ही निकलते हैं। आज की मॉर्निग वाक में थोड़ा लांग डिस्टेंस कवर करेंगे, केन्ट की ओर निकलेंगे आज हम!’
   ‘ठीक है, पर आज पहली तारीख है, वो वेचारा चौकीदार आयेगा पैसे मांगने। आज आप मना नहीं करेंगे? हमें रिटयरमेन्ट के बाद इस अपने घर में आये तीन महीने हो गये, आपने एक बार भी उसे पैसे नहीं दिए। आज तीनों माह के 50 रुपये के हिसाब से डेढ़ सौ रुपये उसको आपने देने ही होंगे। आज मैं आपके मुँह से ना या उसके लिए डाँट-डपट हरगिज नहीं सुनूँगी।....पता नहीं क्यों मुझे लग रहा है.... वह बेचारा बेहद जरूरतमन्द है। पूरी जिन्दगी न जाने आपने कितने जरूरतमन्दों की मदद की, इस बेचारे गरीब चौकीदार को थोड़े से पैसे देने में आप पचासों बाते उसे कह चुके, पर फूटी कौड़ी उसके हाथ पर नहीं रखी!’ कहते हुए गार्गी दो कपों में छानी हुई चाय और अपने परेशान चेहरे को लिए लॉबी में पड़ी टेबल की ओर बढ़ गई।
   ‘... फिर वही चौकीदार का रोना.......’ मैं उसके पीछे आते हुए लगभग झल्लाई आवाज में बोला।
   ‘नहीं मैं अब आपकी एक नहीं सुनूँगी, आपके हर सवाल का जवाब मिल चुका है। पुलिस वैरीफिकेशन इसलिए नहीं हुआ, कि पुलिस उस गरीब की सुनती नहीं। उन्हें उस गरीब से भी दो-तीन सौ रुपये चाहिए। उसके पास अपना गाँव का राशनकार्ड तो है ही, आप ही मोहल्ले के कुछ लोगों को लेकर क्यों नहीं थाने चले जाते हैं, बैंक में बड़े अफसर रहे हो, पुलिस कुछ तो सुनेगी आपकी? मोहल्ले में किसने उसे रखा है, कौन-कौन उसे पैसे देता है..... तो जैसे आप सोचते हो, अधिकांश वैसा ही सोचने वाले लोग हैं इस मोहल्ले में। जोशी जी की बात पच्चीस-तीस परिवार मानते हैं मोहल्ले में, कृष्णपाल जी की पैठ भी बीसेक परिवारों में है और ये दोनों ही लोग आपकी इज्जत करते हैं। आप ही क्यों नहीं इनसे मिलकर चौकीदार का एक सिस्टम बनाने की पहल कर देते हो? बाकी मोहल्ले वाले भी कोशिश करने पर जुड़ ही जायेंगे! उस गरीब का भला हो जायेगा और मोहल्ले को भी एक ईमानदार चौकीदार मिल जायेगा।’ चाय पीते हुए गार्गी बोली थी।
   ‘पर यह रेगुलर तो आता नहीं है, जब पैसे लेने होते हैं तो चार-पांच दिन घूम जाता है। कौन इसके पचड़े में पड़े! फिर हमारी कालौनी तो वैसे भी सेफ है, गाँव से आये कई धाकड़ लोग रहते हैं इसमें। सात-आठ साल तो हमें हो गये मकान बनाए, कोई दुर्घटना घटते सुना कभी इस कालौनी में?’ मैंने चाय सिप करते हुए गार्गी को समझाना चाहा।
  ‘रेगूलर न होना उसकी मजबूरी भी तो हो सकती है। सौ परिवारों के मोहल्ले में से दस लोग भी पैसे नहीं देते हैं। ऐसे में हो सकता है कि कई मोहल्लों में कुछ-कुछ दिन गस्त करता हो। हो सकता है दिन में भी थोड़ा बहुत कुछ और काम भी करता हो, इसलिए एक-दो दिन की छुट्टी कर जाता हो, आखिर कभी-कभी नींद पूरी करना भी तो जरूरी है। रही बात कालोनी के सेफ होने की, सो कालोनी की छोड़ो, आज के समय में संसद भी सेफ नहीं है। मैं तो कहती हूँ चौकीदार के साथ मोहल्ले वालों को कुछ ऐसा सिस्टम भी बनाना चाहिए कि चौकीदार शोर मचाये, तो उसके शोर पर लोगों की कुछ प्रतिक्रिया भी आ सके।’ गार्गी के तर्क भावुकता में पगे हुए थे।
   ‘पर तुम यह कैसे कह सकती हो कि यह चौकीदार ईमानदार है! इन चौकीदारों का कोई भरोसा नहीं होता? आवास विकास में श्रवण भाई के परिवार के साथ जो उस रात हुआ, वो तो तुम जानती ही हो! उस रात जब उन्हें कहीं बाहर जाना था, तो गेट बन्द करने से पहले मिले हल्के से मौके का फायदा उठाकर चौकीदार किस तरह घर में छुप गया और उनके जाते ही......! वो तो अच्छा हुआ कि कुछ सामान भूल गये थे श्रवण जी, सो स्टेशन के रास्ते से ही लौटना पड़ा और उन्होंने भाभी जी को बचा लिया। भागते-भागते वह चौकीदार उन श्रवण जी को भी दो लाठियां जमा गया था, जो हर महीने उसे तय साठ की जगह सौ रुपये का नोट थमा देते थे!
   ‘हाँ, पर दोनों के चेहरों को देखकर अन्तर किया जा सकता है। आपने तो हजारों लोगों से डील किया है, और चेहरा देखकर इन्सान की पहचान के दावे करते रहे हो? फिर वह तो पुलिस से वैरीफाइड भी था.... क्या हुआ, बस जेल ही तो हुई उसे? पुलिस वैरीफिकेशन से चरित्र तो वैरीफाई नहीं हुआ उसका? अपने सुयोग को परिचय के अभाव में कानपुर में रूम ढूंढ़ने में कितनी परेशानी हुई थी। एक चाय वाले ने चेहरे पर विश्वास करके ही तो उसकी मदद की थी! मैं पूरे विश्वास से कह सकती हूँ यह लड़का वैसा चौकीदार नहीं है, वल्कि मुझे तो वक्त का मारा लगता है। इस पर विश्वास किया जा सकता है। मैं सिस्टम को बाईपास करने की बात नहीं कह रही हूँ। उसके बारे में पता करो, अपने को सन्तुष्ट करो, पर उसकी मदद करो। वैसे भी महीने में पचास रुपये देकर लुट तो नहीं जायेंगे हम! आज तो मुझे बड़ी घबराहट हो रही है, ईश्वर न करे वह किसी बड़ी परेशानी में हो, कहीं उसका बच्चा बीमा....!’
   ‘ऐसा क्यों लग रहा है तुम्हें?
   ‘वह जिस दिन भी गश्त पर आता है, सुबह साढ़े चार-पांच बजे तक चक्कर लगाता है। पर आज तीन बजे से मेरी आंख खुली है, तबसे मैंने उसका खड़का नहीं सुना।’ कहते-कहते गार्गी का गला भरने सा लगा था।
   तभी हमारे घर की कालवेल बजी। मैंने उठकर दरवाजा खोला, बाहर पड़ौसी मदनजी का बेटा अनुराग था, जो सुबह-सुबह जोगिंग पर जाया करता था.... लग रहा था दौड़कर आ रहा है..... हाँफता हुआ सा बोला, ‘अन्कल आपने सुना, हमारे मोहल्ले के चौकीदार की तीन नम्बर गली में चोरों ने हत्या कर दी। उस गली में वो त्रिखा जी रहते हैं न, वो लोग कहीं बाहर गये हुए हैं, कल रात उनके घर में चोर घुस आये, चौकीदार ने देख लिया। उसने आस-पास के कई घरों के लोगों को जगाने की कोशिश की पर कोई निकला ही नहीं। तब उसने शोर मचाया जिसे सुनकर चोर बिना चोरी किए भाग तो गये लेकिन भागते-भगते उसके सीने पर चाकू से वार कर गये। वो वेचारा दो दिन से भूखा था, सो कमजोरी की वजह से भागकर अपना बचाव नहीं कर सका। वहीं गली नं. तीन में उसकी लाश पड़ी है। पुलिस आ गई है। उसकी बीबी के साथ चार-पाँच साल की बच्ची है। दहाड़ें मारकर रो रही है। उसके पास तो दाह-संस्कार लाइक पैसे भी नहीं हैं। अंकल सब लोग मिलकर उसकी मदद कीजिए न!......’ वह एक सांस में ही सब कुछ कहकर मेरी ओर देखने लगा।
   मैंने पीछे मुड़कर देखा मेरी पत्नी गार्गी फर्श पर बेहोश पड़ी थी। शायद उसने अनुराग की सारी बात सुन ली थी।